Citizenship Amendment Act 2019 को लेकर एक तरफ विपक्षी दल सड़क से लेकर संसद तक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। विपक्षी दल इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के खिलाफ दिखने का पूरा प्रयास कर रहे हैं, लेकिन यहां भी उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा आड़े आ रही है। ये आरोप खुद इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लगाया है।
न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA 2019) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के खिलाफ होने वाली विपक्षी दलों की बैठक में जाने से इंकार कर दिया है। ये बैठक 13 जनवरी को दिल्ली में होनी है। गुरुवार को बैठक का बहिष्कार करते हुए ममता बनर्जी ने कांग्रेस और लेफ्ट दलों पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सीएए व एनआरसी के मुद्दे पर कांग्रेस और लेफ्ट पर पश्चिम बंगाल में गंदी राजनीति करने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही उन्होंने ये भी घोषणा कर दी है कि सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर वह अकेली ही लड़ेंगी।
ममता ने सीएए व एनआरसी के खिलाफा निकाला विरोध मार्च
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उत्तर 24 परगना के मध्यग्राम में सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध मार्च निकाला।
बंद के नाम पर गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं : ममता
केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में बुधवार को वाम मोर्चा और कांग्रेस के बंगाल बंद पर तृणमूल प्रमुख और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने करारा प्रहार किया है। हिंसक प्रदर्शन, तोड़फोड़, आगजनी और यातायात में व्यवधान पर नाराजगी जाहिर करते हुए ममता ने कहा कि बंद के नाम पर गुंडागर्दी की जा रही है। इसे आंदोलन नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि पुलिस प्रशासन को तोड़फोड़ करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए गये हैं। दक्षिण 24 परगना में एक सभा में ममता बनर्जी ने कहा कि राज्य में जिनका कोई राजनीतिक आधार नहीं है, वे बंद जैसी सस्ती राजनीति करके यहां की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह बंद के मकसद का समर्थन करती हैं, लेकिन उनकी पार्टी और सरकार किसी भी तरह के बंद के विरोध में हैं।
केरल में माकपा बंगाल से बेहतर
मुख्यमंत्री ने कहा कि केरल में माकपा की सरकार है और वह बंगाल में वामपंथियों से बहुत बेहतर है क्योंकि कम से कम वे अपनी विचारधारा में विश्वास करते हैं। वामो के पास मानवता का मूल्य मात्र शेष नहीं बचा है। कहीं ट्रेन के नीचे बम रख दिया गया, कहीं पत्थर फेंके जा रहे हैं, कहीं ट्रेनें तो कहीं बसें रोकी जा रही हैं तो कहीं बाइक सवारों के साथ मारपीट की गई है। उन्होंने सवाल उठाया कि यह दादागिरी नहीं तो और क्या है? क्या इसे आंदोलन कहा जा सकता है।
आंदोलन एक दिन का नहीं होता
अपने सिंगूर आंदोलन का प्रसंग उठा कर बनर्जी ने कहा कि मैंने 26 दिनों तक आंदोलन किया था, लेकिन एक बस तक में किसी ने हाथ नहीं लगाया। आंदोलन एक दिन का नहीं, बल्कि निरंतर चलता है। आंदोलन करना कठिन होता है, क्योंकि इसके लिए रास्ते पर पड़े रहना पड़ता है।
ममता के बयान के क्या हैं मायने?
CAA-NRC मुद्दे पर ममता का ये रुख भले ही चौंकाने वाला हो, लेकिन उन्हें करीब से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषकों इससे बिल्कुल हैरान नहीं हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता का ये बयान बताता है कि वह केंद्र की भाजपा सरकार का विरोध तो करना चाहती हैं, लेकिन वह इस मुद्दे पर किसी और दल के साथ क्रेडिट शेयर नहीं करना चाहती हैं। इसी से पता चलता है कि सीएए-एनआरसी मुद्दे पर विपक्ष की चिंता कितनी वाजिब है। ममता बनर्जी पहले भी तमाम मुद्दों पर ऐसा रुख अख्तियार कर चुकी हैं।
आंदोलन एक दिन का नहीं होता
अपने सिंगूर आंदोलन का प्रसंग उठा कर बनर्जी ने कहा कि मैंने 26 दिनों तक आंदोलन किया था, लेकिन एक बस तक में किसी ने हाथ नहीं लगाया। आंदोलन एक दिन का नहीं, बल्कि निरंतर चलता है। आंदोलन करना कठिन होता है, क्योंकि इसके लिए रास्ते पर पड़े रहना पड़ता है।
ममता के बयान के क्या हैं मायने?
CAA-NRC मुद्दे पर ममता का ये रुख भले ही चौंकाने वाला हो, लेकिन उन्हें करीब से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषकों इससे बिल्कुल हैरान नहीं हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता का ये बयान बताता है कि वह केंद्र की भाजपा सरकार का विरोध तो करना चाहती हैं, लेकिन वह इस मुद्दे पर किसी और दल के साथ क्रेडिट शेयर नहीं करना चाहती हैं। इसी से पता चलता है कि सीएए-एनआरसी मुद्दे पर विपक्ष की चिंता कितनी वाजिब है। ममता बनर्जी पहले भी तमाम मुद्दों पर ऐसा रुख अख्तियार कर चुकी हैं।
आंदोलन एक दिन का नहीं होता
अपने सिंगूर आंदोलन का प्रसंग उठा कर बनर्जी ने कहा कि मैंने 26 दिनों तक आंदोलन किया था, लेकिन एक बस तक में किसी ने हाथ नहीं लगाया। आंदोलन एक दिन का नहीं, बल्कि निरंतर चलता है। आंदोलन करना कठिन होता है, क्योंकि इसके लिए रास्ते पर पड़े रहना पड़ता है।
ममता के बयान के क्या हैं मायने?
CAA-NRC मुद्दे पर ममता का ये रुख भले ही चौंकाने वाला हो, लेकिन उन्हें करीब से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषकों इससे बिल्कुल हैरान नहीं हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता का ये बयान बताता है कि वह केंद्र की भाजपा सरकार का विरोध तो करना चाहती हैं, लेकिन वह इस मुद्दे पर किसी और दल के साथ क्रेडिट शेयर नहीं करना चाहती हैं। इसी से पता चलता है कि सीएए-एनआरसी मुद्दे पर विपक्ष की चिंता कितनी वाजिब है। ममता बनर्जी पहले भी तमाम मुद्दों पर ऐसा रुख अख्तियार कर चुकी हैं।
ममता के बयान के क्या हैं मायने?
CAA-NRC मुद्दे पर ममता का ये रुख भले ही चौंकाने वाला हो, लेकिन उन्हें करीब से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषकों इससे बिल्कुल हैरान नहीं हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता का ये बयान बताता है कि वह केंद्र की भाजपा सरकार का विरोध तो करना चाहती हैं, लेकिन वह इस मुद्दे पर किसी और दल के साथ क्रेडिट शेयर नहीं करना चाहती हैं। इसी से पता चलता है कि सीएए-एनआरसी मुद्दे पर विपक्ष की चिंता कितनी वाजिब है। ममता बनर्जी पहले भी तमाम मुद्दों पर ऐसा रुख अख्तियार कर चुकी हैं।