इस मनोरोग से ग्रस्त लोग दूसरों द्वारा स्वीकार न किए जाने के डर से किसी भी नए व्यक्ति से मिलने या उससे बात करने में कतराते हैं। ऐसे लोग अपनी आलोचना व तिरस्कार के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। प्रतिभा और योग्यता होने के बावजूद ये लोग जीवन में सामाजिक व व्यावसायिक क्षेत्र में प्राय: विफल रहते हैं।
कारण: दब्बू और नकारात्मक प्रवृत्ति के पीछे कुछ हद तक आनुवांशिक कारण भी उत्तरदायी होते हैं। इसके अलावा व्यक्तित्व विकास में बाधक पारिवारिक माहौल और जीवन से जुड़ी परिस्थितियां व तल्ख तजुर्बे भी व्यक्ति को इस समस्या से ग्रसित कर सकते हैं। यदि बच्चे के माता-पिता उसके हर काम में कमी निकालते हैं और उसकी तुलना दूसरों से करते हैं तो बच्चे में हीनभावना घर कर जाती है। माता-पिता में परस्पर झगड़ा होना व पिता में नशे की लत का होना भी बच्चों में आत्मविश्वास की कमी का कारण होता है।
लक्षण:
- दूसरों से बात करते समय ऐसे लोग हमेशा दुविधा में रहते हैं और अपनी बात प्रभावशाली ढंग से नहीं रख पाते हैं।
- ऐसे व्यक्ति परिवार के सुरक्षित माहौल में बने रहना चाहते हैं और नौकरी भी ऐसी करना चाहते हैं जिसमें चुनौतियां कम से कम हों।
- आत्मविश्वास की कमी के चलते ऐसे लोग हमेशा अपने हुनर, गुण व उपलब्धियों को अनदेखा कर देते हैं या उन्हें पहचानने से इंकार कर देते हैं।
- दूसरों द्वारा की गई सकारात्मक टिप्पणियों को भी ये लोग अपने खिलाफ गंभीर नकारात्मक टिप्पणी समझते हैं और मन ही मन बुरा मान जाते हैं।
- ऐसे व्यक्ति निर्णय लेने में असमर्थ हो जाते हैं और किसी भी नए काम की शुरुआत से पहले ही उन्हें असफलता या किसी दुर्घटना के होने की चिंता सताने लगती है।
इलाज: व्यक्तित्व के इस प्रकार के विकार के इलाज में मनोचिकित्सा का प्रमुख स्थान है। मनोचिकित्सा के दौरान स्वजनों की सहायता से व्यक्ति को उसकी संवेदनशीलता को पहचानना व उससे निपटने की विधियां सिखाई जाती हैं। स्वजनों की सहायता से ऐसे व्यक्ति को सकारात्मक दृष्टिकोण रखने व अपनी खूबियों को पहचानकर उनमें प्रवीणता हासिल करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके साथ ही माता-पिता को बच्चे की कमियों को अनदेखा कर सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए ट्रेनिंग दी जाती है। घर में ऐसा बच्चा होने पर माता-पिता को आपसी मतभेदों को उसकी अनुपस्थिति में ही सुलझाना चाहिए। ऐसे मनोरोगी उन लोगों के साथ ज्यादा समय बिताएं, जो दूसरों की कमियां नहीं निकालते व दूसरों की सुनते भी हैं। कई बार व्यक्ति में व्याप्त घबराहट, डिप्रेशन और कुंठा को दूर करने की लिए दवाओं का भी उपयोग किया जाता है।
[डॉ. उन्नति कुमार, मनोरोग विशेषज्ञ] Dainik Jagran article